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पैंतीस पार हुआ बहना

mukt-sarita
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पैतीस पार हुआ बहना

अब अक्ल आयी है।
किश्त ,मुए सुफेद बालों की
निकल आयी है।
ख़त्म हुआ रोना धोना
अब डरकर दुःख से ।
धीरज ने मन में चादर
अब फैलाई है ।
बौनी हो गयी दुनियाँ
लालच के घेरे मे ।
वहीँ मेरी तृप्ति ने
पकड़ी लंबाई है ।
पाने खोने की कुश्ती में
नहीं मिला कुछ ।
भैंस के आगे जैसे
बीन बजायी है ।
औघड़ हम और इस
दुनियाँ की व्यवहारिकता ।
झूठी शान की करते
सब धान बुबाई हैं ।
ऊंचे -ऊंचे महल खड़े
हैं अभिमानों के ।
जिनके आगे छोटी पड़
जाती मेरी परछाई है ।
आढ़े -टेढ़े शब्दों को गढ़
लेती हूँ बस मैं
सरल मैं उतनी जितनी
मेरी कविताई है ।
पैंतीस पार हुआ बहना
अब अक्ल आयी है ।
क़िस्त मुए सुफेद बालों की
निकल आयी है।

प्रतिभा 14जुलाई2016

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